मेरे देश की इस भाषा मैं एक बात पुरानी लगती है
एक गुमसुम सी अभिलाषा की एक हवा सुहानी लगती है
इसका वर्णन , इससे चिंतन, संतों की वाणी मैं ये है
यह कल कल करती नदिया सी अपनी कहानी रचती है...........
आज आज़ादी के ६२ वर्ष उपरांत भी हिन्दी भाषा कहीं न कहीं हर भारतीय की जुबान पर ख़ुद को तलाशती प्रतीत होती है। जिस देश मैं वह मातृभाषा के रूप में जानी जाती है उसी देश में अधिकाँश उच्चतर वर्ग द्वारा उसका प्रयोग द्वितीय भाषा के रूप में किया जाता है। जहाँ अपने अधिकार और देश के मान के लिए हजारों लाखों शीश कट गये थे वहाँ अपनी ही पहचान से क्यूँ हर कोई मुह छिपाता दिखाई देता है। प्रिया पाठकों क्यूँ न इस जश्ने आज़ादी के उत्सव पर हम सभी अज्ञान- के अंधेरों से ज्ञान के उजालों की और चलें और अपनी भाषा को उसका स्थान दिलाने का प्रयास करें।
भारत प्यारा देश हमारा फूलों का गुलदस्ता है,
कई रंगों के फूल यहाँ हर फूल यहाँ पर हँसता है।
गुजरती,यूपी,बंगाली,कश्मीरी और मद्रासी,
सब रंगों के फूल यहाँ पर कहलाते भारतवासी,
आजादी की इस वर्षगाँठ पर
भारत माँ को मेरा शत शत नमन ........
शुची डोभाल
Sunday, August 16, 2009
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