Saturday, February 28, 2009

दुश्यंत कुमार की एक कविता:

हो गई है पीड़ पर्वत सी पिघलनी चाहिए

इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए

मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही

हो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चाहिए

No comments:

Post a Comment