Sunday, August 16, 2009

हिन्दी भाषा-आज भी ख़ुद की तलाश मैं

मेरे देश की इस भाषा मैं एक बात पुरानी लगती है
एक गुमसुम सी अभिलाषा की एक हवा सुहानी लगती है
इसका वर्णन , इससे चिंतन, संतों की वाणी मैं ये है
यह कल कल करती नदिया सी अपनी कहानी रचती है...........


आज आज़ादी के ६२ वर्ष उपरांत भी हिन्दी भाषा कहीं न कहीं हर भारतीय की जुबान पर ख़ुद को तलाशती प्रतीत होती है। जिस देश मैं वह मातृभाषा के रूप में जानी जाती है उसी देश में अधिकाँश उच्चतर वर्ग द्वारा उसका प्रयोग द्वितीय भाषा के रूप में किया जाता है। जहाँ अपने अधिकार और देश के मान के लिए हजारों लाखों शीश कट गये थे वहाँ अपनी ही पहचान से क्यूँ हर कोई मुह छिपाता दिखाई देता है। प्रिया पाठकों क्यूँ न इस जश्ने आज़ादी के उत्सव पर हम सभी अज्ञान- के अंधेरों से ज्ञान के उजालों की और चलें और अपनी भाषा को उसका स्थान दिलाने का प्रयास करें।

भारत प्यारा देश हमारा फूलों का गुलदस्ता है,
कई रंगों के फूल यहाँ हर फूल यहाँ पर हँसता है।
गुजरती,यूपी,बंगाली,कश्मीरी और मद्रासी,
सब रंगों के फूल यहाँ पर कहलाते भारतवासी,

आजादी की इस वर्षगाँठ पर
भारत माँ को मेरा शत शत नमन ........




शुची डोभाल

हिन्दी भाषा-ख़ुद की खोज मैं

Sunday, August 2, 2009

ब्लॉग परिचय

हमारा ये ब्लॉग ‘हिन्दी भूमि’ हम तीन लोगों का एक सामूहिक प्रयास है। इस ब्लॉग के ज़रिये हम हिन्दी को अपनी अभिव्यक्ति का माध्यम बनाकर अपनी सोच, अपनी भावनाओं और संवेदनाओं का इज़हार करने का जज़्बा रखते हैं। हम तीनों यानी स्निग्धा भट्टाचार्जी, शुचि डोभाल और मृत्युंजय सिंह भारत के तीन अलग-अलग सांस्कृतिक इलाकों में पले-बढ़े हैं। स्निग्धा जहां पूर्वोत्तर भारत के असम राज्य के एक छोटे से शहर तिनसुकिया से हैं, वहीं शुचि डोभाल हिमालय की गोद में बसे उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल से हैं। मृत्युञ्जय सिंह बिहार की राजधानी पटना से हैं। तीन अलग-अलग भाषाई और सांस्कृतिक क्षेत्रों से आने के बावजूद हम तीनों को जो एक चीज जोड़ती है वो है हिन्दी के प्रति हम तीनों का लगाव। हमारा मानना है कि हिंदी देश की एक मात्र ऐसी भाषा है जो सौ करोड़ से ज्यादा बहुभाषी और बहुसांस्कृतिक भारत के लोगों को आपस में जो सकती है। लेकिन हिंदी की इस ताकत को अभी तक पहचन नहीं मिली है। हिंदी की इसी ताकत को महसूस करते हुए हमने ये ब्लॉग शुरू किया है। हिंदी की सबसे बड़ी खासियत ये है कि हिंदी का जन्म तमाम भारतीय भाषाओं के शब्दों को अपना कर ही हुआ है। हिंदी भाषा में उर्दू, पंजाबी, मराठी, राजस्थानी गुजराती और तमाम दूसरे भारतीय भाषाओं के शब्द बहुतायत में मिलते हैं। मशहूर पाकिस्तानी शायर अहमद फराज़ का ये शेर इस मामले में काफी मौजूं है ...............
ग़म-ऐ-दुनिया भी ग़म-ऐ-यार में शामिल कर लो,
नशा बढ़ता है शराबें जो शराबों में मिलें

फराज़ साहब का ये शेर किसी भाषा और संस्कृति को निखारने के लिए उसका दूसरी भाषाओं और संस्कृतियों के साथ मेल-जोल की अहमियत को बेहद खूबसूरती के साथ बयां करता है। इसी शेर के असर में हमनें ये कोशिश शुरू की है। लेकिन हमें अपने पाठकों से भी काफी उम्मीदें हैं जो हमारी इस कोशिश पर अपनी बेबाक राय के जरिए हमें रास्ता दिखाएंगे।