Friday, July 3, 2009


सभी वित्तीय बाज़ारों का नियंत्रण सेबी के हाथ में हो सकता है
सुधारों की दूसरी पीढ़ी में बंद पड़ी कुछ और खिड़कियां भी खुलेंगी। नियंत्रण की बाधाएं हटेंगी, जिससे अर्थव्यवस्था और उदार होगी। शेयर, कमोडिटी, कर्ज बाजार के नियम और आसान होंगे। इस वर्ष की आर्थिक समीक्षा यही कह रही है। संकेत हैं कि बजट में इन क्षेत्रों के लिए कई उपायों का ऐलान हो सकता है। सभी वित्तीय बाजारों का समान विकास हो, इसके लिए नियामक भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड [सेबी] को एकमात्र रेगुलेटर का दर्जा देने का प्रस्ताव है। फिर चाहे वह शेयर बाजार हो, कमोडिटी बाजार हो या फिर कर्ज बाजार। हालांकि सेबी को इन बाजारों की बागडोर सौंपने को लेकर अभी तक एकराय नहीं थी। लेकिन समीक्षा में इस सिफारिश को शामिल करने का मतलब है कि सरकार ने सेबी को यह जिम्मेदारी सौंपने का मन बना लिया है। इससे सभी बाजारों को नियंत्रित करने वाले नियमों में एकरूपता लाई जा सकेगी। घरेलू वित्तीय बाजार को अंतरराष्ट्रीय बाजारों के समकक्ष खड़ा करने के लिए नकद और वायदा करेंसी बाजार के नियमों को और सरल बनाने की सिफारिश समीक्षा में है। इससे निवेशकों को भी घरेलू बाजार में निवेश के ज्यादा मौके मिलेंगे। यही नहीं समीक्षा रेपो और डेरिवेटिव्स जैसे इंस्ट्रुमेंट्स को कारपोरेट कर्ज बाजार में उतारने की इजाजत देने की सिफारिश भी कर रही है। ऐसा होता है तो कंपनियों के लिए पूंजी जुटाने के और रास्ते खुल जाएंगे।

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